दुनिया के मोह माया का त्याग कर, एक पूरा परिवार सन्यासी जीवन व्यतीत कर रहा है। इस पांच जनों के एक परिवार ने सन्यासी जीवन अपनाने के बाद अपनी सारी संपत्ति दान कर दी।
उज्जैन के पांच सदस्यीय इस जैन परिवार ने करीबन 20 साल पहले आध्यात्म का मार्ग चुना। परिवार के सदस्यों में माता-पिता, दो बेटे और एक बेटी ने अपनी संपत्ति दान कर दीक्षा ग्रहण कर ली और फिर धर्म के पथ पर चलते हुए अपने-अपने रास्ते पर आगे बढ़ते चले गए।
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संयोग से इंदौर शहर में चातुर्मास के दौरान पूरा परिवार 20 साल बाद एक साथ मिला। जैसा कि सांसारिक रिश्तों में सुख-दुःख की बातें होती हैं, उनसे परे इनकी बातों में आध्यात्म, धर्म, और समाज कल्याण का राग था।
38 वर्षीय आनंदचंद्र सागर महाराज परिवार के दीक्षा लेने के बारे में बताते है कि सबसे पहले उनके बड़े भाई 41 वर्षीय पद्मचंद्र सागर महाराज ने दीक्षा ग्रहण की। इसके करीब एक साल बाद परिवार के अन्य सदस्यों ने भी उनसे प्रेरित हो दीक्षा का मार्ग अपना लिया।
68 वर्षीय पिता मेघचंद्र सागर महाराज, 62 वर्षीय माता मेघवर्षाजी और 41 वर्षीय बड़ी बहन पद्मवर्षाजी अपने गृहस्थ जीवन का त्याग कर आध्यात्म के मार्ग की ओर अग्रसर हो गए।
इनका पूरा परिवार पढ़ा-लिखा है। आनंदचंद्र महाराज के पिता डबल एमए है, वहीं उनके बड़े भाई पद्मचंद्र सागर ललित कला के विशेषज्ञ रहे हैं। उनकी बहन एमए लिटरेचर (हिंदी-अंग्रेजी-संस्कृत) से कर चुकी हैं।
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अपने परिवार के दीक्षा ग्रहण के निर्णय को उत्तम बताते हुए आनंदचंद्र सागर महाराज कहते हैं कि वह सब अब धर्म के मार्ग पर चलते हुए संसार के कल्याण हेतु कार्य कर रहे हैं।