पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार एक के बाद एक विवादित कदम उठा रही है। स्कूली पाठ्यपुस्तकों से भगवान राम के संदर्भ को हटाने के बाद अब सरकार ने फैसला किया है कि यहां के बच्चे अब तृणमूल कांग्रेस नेताओं पर चैप्टर पढ़ेंगे।

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पश्चिम बंगाल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन की ओर से तैयार नई पाठ्यपुस्तक की ड्राफ्ट कॉपी में सिंगूर जमीन आंदोलन पर एक अध्याय जोड़ा गया है। ‘अतीत ओ एत्झयो’ नाम की ये पाठ्यपुस्तक कक्षा आठ के लिए प्रकाशित की जा रही है। इसे अगले शैक्षणिक सत्र से पढ़ाया जाएगा।

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सिंगुर संबंधी अध्याय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खुद के संदर्भ से शुरू होता है। फिर इसमें तृणमूल कांग्रेस के अन्य नेताओं- पार्थ चटर्जी, मुकुल रॉय, पुर्णेंदु बासु, असीमा पात्रा, डोला सेन, ब्रात्य बासु, अर्पिता घोष, शोभन चटर्जी, फिरहाद हाकिम, शोभनदेव चटर्जी, सुब्रत बक्शी, रबिंद्रनाथ भट्टाचार्जी, बेचाराम मन्ना आदि के भी नाम जोड़े गए हैं।
इस अध्याय में सिंगुर आंदोलन को ऐतिहासिक करार दिया गया है। इसे किसानों और खेतिहर मजदूरों के संघर्ष को नई दिशा देने वाला कहा गया है। अध्याय मे ममता बनर्जी द्वारा टाटा की की लखटकिया नैनो कार परियोजना को रोके जाने को सही करार दिया गया है। बच्चों को पढ़ाया जाएगा कि सिंगुर आंदोलन ने बहुफसली जमीन पर फैक्ट्री स्थापित करने की खराब कोशिश को रोक दिया।

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गौरतलब है कि सिंगुर आंदोलन की वजह से ही ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को सत्ता में आने का मौका मिला था। इस आंदोलन को अब मील का पत्थर के रूप में पढ़ाए जाने की पहल की जा रही है।
राज्य सरकार की ओर से पाठ्यपुस्तकों में बदलाव के जिम्मेदार विशेषज्ञ कमेटी के अवीक मजूमदार कहते हैंः
“क्या हम किसी को इसलिए शामिल नहीं करें कि वो एक राजनीतिक दल से संबंध रखते हैं। अगर उन्होंने आंदोलन की अगुआई की है तो ये वैधानिक है कि उन्हें शामिल किया जाए।”
गौरतलब है कि पाठ्यपुस्तकों में तृणमूल नेताओं के बारे मे पढ़ाए जाने वाले अध्याय के बारे में राज्य सरकार ने पिछले साल विचार किया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राज्य सरकार ने फैसला किया कि सिंगुर अध्याय को पाठ्यक्रम में जोड़ा जाएगा।

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पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी को इसमें कुछ भी गलत नहीं लगता।
वह कहते हैंः
“अगर जलियांवाला बाग हत्याकांड या सिपाही विद्रोह सरीखी घटना पाठ्यक्रम में शामिल की जा सकती हैं तो फिर सिंगुर आंदोलन को क्यों नहीं।”
चटर्जी अपने दावे को मजबूत करते हुए कहते हैं कि इस संबंध में राज्य सरकार को बुद्धिजीवियों तथा शिक्षा जगत के प्रसिद्ध लोगों ने राय दी थी।

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पश्चिम बंगाल सरकार पर आरोप लगते रहे हैं कि यह राज्य में साम्प्रदायिकता को कम करने के लिए कुछ खास नहीं कर रही। साथ ही राज्य सरकार के कई फैसलों के लिए भी उसकी आलोचना की जा रही है।
हाल ही में सातवीं कक्षा की एक पुस्तक में इन्द्रधनुष के लिए बांग्ला का रामधनु (भगवान राम का धनुष) इस्तेमाल करने की बजाए रंगधनु का इस्तेमाल किया गया था। माना जा रहा है कि भगवान राम का नाम पढ़ाए जाने पर मुसलमानों को आपत्ति थी। वैसे, बांग्ला भाषाविदों का कहना है कि रंगधनु नामक कोई शब्द बांग्ला में नहीं रहा है और इसे पहली बार इजाद किया गया है।