कुछ ऐसे व्यक्तित्व होते हैं जो समय से परे अनंतकाल के लिए अजर-अमर हो जाते हैं। ऐसे ही कालजयी कलमकार हुए रबीन्द्रनाथ टैगोर। ‘आमार सोनार बांग्ला’ लिखने वाले टैगोर विश्वकवि बन गए और आज भी अपनी रचनाओं के माध्यम से नई पीढ़ी को प्रेरित कर रहे हैं। वह एक ऐसे व्यक्ति हुए, जिन्होंने अपने दिल की सुनी और लोग उनकी सुनने लगे।
तभी तो उन्होंने लिखा था कि ‘एकला चलो रे…
इनकी रचनाओं में वो बात थी कि मातृभाषा बांग्ला में लिखने के बावजूद विश्वभर में अमिट छाप छोड़ सकी। ये पहले एशियाई थे, जिन्हें नोबल पुरस्कार से नवाजा गया था। इनका जन्म 7 मई, 1861 को कलकत्ता के प्रसिद्ध जोड़ासांको में हुआ था। इन्होंने बंगाल की संस्कृति को नया गठन दिया, नई परिभाषा दी। गीत, संगीत, कला, शिक्षा आदि अनेक क्षेत्रों में इन्होंने अपना योगदान दिया और जग-प्रसिद्ध हुए।
ऐसी अनेक बातें हैं जो राष्ट्रगान ‘जन, गण, मन के रचयिता रबीन्द्रनाथ टैगोर के बारे में पाठ्यक्रमों से लेकर अन्य माध्यमों से हम लोग जानते रहे हैं। हालांकि, हम यहां आपको कुछ अलग ही चीज बताने जा रहे हैं।
यह जानकर आपको अचरज होगा कि टैगोर ने भारत के राष्ट्रगान के अलावा बांग्लादेश का राष्ट्रगान भी लिखा था। वहीं, श्रीलंका का राष्ट्रगान भी 1938 में लिखे इनके गीत का ही सिंहली अनुवाद है।
रबीन्द्रनाथ टैगोर प्रकृति के समीप रहना पसंद करते थे और उनका सोचना था कि शिक्षार्जन के लिए प्रकृति के समीप रहना जरूरी है। इसीलिए उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना की थी। पद्मा नदी को लेकर जो उनमें अगाध प्रेम था, वह जगविदित है।
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