देश में भले ही कुछ लोग सहिष्णुता और असहिष्णुता पर बहस छेड़ने की कोशिशों में लगे हैं, लेकिन भारत की धरती अब भी गंगा-जमुनी तहजीब को मानने वालों की धरती है।
भगवान शंकर की नगरी काशी में रहने वाली मुस्लिम महिला नन्ही पिछले 20 साल से भोले शंकर, नन्दी, मां दुर्गा और भगवान गणेश की पारे की मुर्तियां बनाती आ रही हैं।
दरअसली नन्ही के पति एक बेहतरीन मुर्ति कारीगर थे। उनके देहान्त होने के बाद नन्ही ने पारे से मुर्ति निर्माण की इस परम्परा को आगे बढ़ाया था।
नफरत की दीवार नहीं, प्यार की इमारत बुलन्द हो
नन्ही का कहना है कि उनके पति चाहते थे कि समाज में नफरत की दीवार को गिराकर प्यार की इमारत को खड़ा किया जाए।
“पति की मौत के बाद परिवार को सम्भालना बेहद मुश्किल था, लेकिन परिवार और समाज के बुजुर्गों ने काफी हौसला दिया। यही वह वक्त था कि मैने पारे से शिवलिंग, भगवान गणेश और मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने का काम शुरू कर दिया। इन मुर्तियों को हम बड़े ही आस्था, प्यार और शिद्दत से बनाते हैं। लोगों का प्यार मिलता गया। बेटियों ने भी इस काम में मेरी काफी मदद की। समाज में प्यार और भाईचारे का रिश्ता देश की तरक्की का दर्पण है।”
मुम्बई, जयपुर में है डिमान्ड
नन्ही का कहना है कि इन मुर्तियों की मुम्बई और जयपुर में खास डिमान्ड है। नन्ही के परिवार को इन शहरों से ऑर्डर मिलते रहते हैं।
इन मुर्तियों को बनाने में पवित्रता का खास ध्यान रखा जाता है। जिस कमरे में यह मुर्तियां बनती हैं, वहां नन्हीं का परिवार खाने-पीने की चीजें नहीं ले जाता।
उनकी बेटी फरहा कहती हैं कि उन्हें कभी नहीं लगता कि वह हिन्दुओं से अलग हैं। दुनिया में लोग धर्म को अलग नजरिए से देखते हैं, लेकिन हर इन्सान जिन्दगी को खूबसूरती से जीना चाहता है।
फरहा के मुताबिक इन्सान को भावनाओं के समंदर में हर इंसान को गोते लगाना चाहिए , तभी खुशहाली हर दरवाजे पर दस्तक देगी।
फोटो साभारः भास्कर