कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व होता है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, नासिक, प्रयाग और उज्जैन में स्नान करते हैं। यहां हर बारह वर्ष में कुंभ आयोजित किया जाता है। लेकिन प्रयाग में कुंभ दो बार आयोजित किया जाता है। इन कुंभ मेलों का आकर्षण होते हैं यहां आने वाले साधु-संतों के 13 अखाड़े। वैसे अब इनमें दो अखाड़े और जुड़ गए हैं, एक किन्नर अखाड़ा और दूसरा महिला नागा साधु (Mahila Naga Sadhus) अखाड़ा।
कुंभ में आया महिला नागा साधु अखाड़ा
किन्नर अखाड़े के बारे में तो सभी जानते हैं। महिला नागा साधु अखाड़े के बारे में सुनकर कुछ लोगों को थोड़ी हैरानी होगी। महिला नागा साधु भी पुरुष नागा साधुओं की ही तरह होती हैं। दोनों के नियम-कायदे एक समान होते हैं। दोनों में केवल एक ही फर्क होता है महिला नागा साधुओं को एक कपड़ा पहनने की इजाज़त होती है।
महिला नागा साधुओं को होती है ये अनुमति
पुरुषों की ही तरह महिला नागा साधुओं का जीवन भी पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित होता है। दोनों के ही दिन की शुरुआत और दिन का अंत पूजा-पाठ के साथ होता है। महिलाएं जब नागा साधु बन जाती हैं तो उन्हें सभी माता कहकर पुकारते हैं। महिला साधुओं को जो एक कपड़ा पहननने की अनुमति होती है वो कपड़ा गेरुए रंग का होना चाहिए। साथ ही उन्हें माथे पर तिलक लगाना भी आवश्यक होता है।
त्यागना पड़ता है सांसारिक मोह
महिला नागा साधु बनने के लिए महिलाओं को कदा तप करना होता है। सबसे पहले एक महिला को करीब 10 साल की अवधि तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। जब महिला ये करने में सफ़ल हो जाती है तब उसे नागा साधु बनने की अनुमति दी जाती है। साथ ही महिला की पिछली ज़िंदगी के बारे में भी पूरी तरह से जानकारी हासिल की जाती है। ताकि पता लगाया जा सके महिला पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित हो गई है या नहीं।
स्वयं का करना पड़ता है पिंडदान
महिला को नागा साधु बनने के दौरान ये साबित करना पड़ता है वो अपनी पिछली ज़िंदगी से पूरी तरह वापस आ गई है या नहीं। उसे किसी से भी किसी प्रकार का मोह तो नहीं है। सांसारिक सुखों से उसका लगाव पूरी तरह छूट गया है। इसी के साथ महिला साधु को अपना स्वयं का पिंडदान भी करना पड़ता है। यानी उसे खुद को मृत समझना पड़ता है।
पुरुष नागा साधुओं की तरह मिलता है सम्मान
इस प्रक्रिया के दौरान महिलाओं को अपने बालों का दान करना पड़ता है। इसके बाद पवित्र नदी के जल में स्नान अकर्ण होता है। महिला नागा साधुओं को भी उसी प्रकार सम्मानित किया जाता है जिस प्रकार पुरुष नागा साधुओं को सम्मान दिया जाता है। महिला नागा साधु भी पुरुष नागा साधुओं के साथ ही कुंभ में पहुंचती हैं। वो भी उन्हीं के साथ पवित्र नदी में स्नान करती हैं। लेकिन पुरुष नागा साधुओं के स्नान करने के बाद ही वो पानी में उतरती हैं।