वर्ष 1947 में भारत और पाकिस्तान के बीच पहले युद्ध के दौरान कबाइली घुसपैठिए पाकिस्तान फौज की मदद से श्रीनगर के नज़दीक पहुंच गए थे। वह कश्मीर के एक विशाल हिस्से में सेंध लगाते हुए श्रीनगर तक आए थे।
उस वक़्त मेजर सोमनाथ ने अपने साथियों के साथ मिलकर अपनी आखिरी सांस तक उन घुसपैठियों को रोके रखा था। युद्ध के दौरान मेजर सोमनाथ का आखिरी रेडियो सन्देश था “मैं एक इंच पीछे नहीं हटूंगा और तब तक लड़ता रहूंगा, जब तक कि मेरे पास आखिरी जवान और आखिरी गोली है।”
मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के निवासी मेजर सोमनाथ 3 नवंबर, 1947 को अगर अपनी डेल्टा कंपनी के 50 जवानों की ब्रिगेड के साथ सही वक़्त पर श्रीनगर एयरपोर्ट से लगे टीले पर नहीं पहुंचते, तो भारत का नक्शा कुछ और हो सकता था।
भारतीय सेना की चार कुमाऊं, दो इन्फैन्ट्री बटालियन और एक सिख बटालियन का पहली टुकड़ी के तौर पर चयन किया गया था। मेजर सोमनाथ शर्मा कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी कमांडर थे। भारतीय सेना की पहली टुकड़ी 27 अक्टूबर 1947 को श्रीनगर एयरपोर्ट पहुंची थी।

देश का पहला परमवीर चक्र पाने वाले मेजर सोमनाथ wikimedia
युद्ध के दौरान मेजर सोमनाथ का बायां हाथ टूट गया था और उनका अस्पताल में इलाज चल रहा था। लेकिन जब उन्हें पता चला कि युद्ध के लिए चार कुमाऊं बटालियन कश्मीर के लिए रवाना हो रही है, तो वह अस्पताल से भागकर एयरपोर्ट पहुंचे और युद्ध के लिए गई सेना की कूच में शामिल हो गए। उन्हें श्रीनगर एयरपोर्ट की चौकसी का ज़िम्मा सौपा गया था।
वहीं दूसरी ओर हज़ारों की संख्या में कबाइली घुसपैठिए कत्लेआम मचाते हुए, बरामुला तक पहुंच चुके थे। जब घुसपैठियों को भारतीय सेना की श्रीनगर एयरपोर्ट पर आने की भनक हुई तो वह तेजी के साथ श्रीनगर की ओर रवाना हो गए।

युद्ध से पहले मेजर सोमनाथ (बीच में) rakshak
मेजर सोमनाथ अपने 55 जवानों की ब्रिगेड के साथ 500 पाकिस्तानियों पर भारी पड़े थे। वह एक हाथ में बन्दूक थामे दुश्मन की सेना पर गोलियां बरसा रहे थे। उन्होंने और उनकी ब्रिगेड ने 500 पाकिस्तानियों को करीबन 6 घंटे तक रोके रखा, जब तक की भारतीय सेना से अतिरिक्त मदद नहीं आ गई। इस युद्ध में मेजर सोमनाथ समेत कुमाऊं बटालियन के 4 जवान शहीद हुए थे।
मेजर सोमनाथ को मरणोपरांत देश का पहला सर्वोच्च सैन्य अलंकरण परमवीर चक्र प्रदान किया गया।
गौरतलब है कि मेजर सोमनाथ के परिवार ने भारतीय सेना में अपना योगदान दिया है। उनके पिता मेजर जनरल अमरनाथ शर्मा को भी 1950 में इस चक्र से सम्मानित किया गया।