पूरे देश में दीपावली की धूम है। जहां देश के हर वर्ग, हर राज्य के लोग खुशहाल और रोशन जीवन की कामना कर रहे हैं। वहीं एक राज्य ऐसा भी है, जहां के सरकारी स्कूलों में मिड डे मील में पकाने वाली ‘भोजन माताओं’ की ज़िंदगी धुएं में घुलकर दम तोड़ रही है।
केन्द्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी ‘उज्जवला’ योजना जहां देश के हर गरीब महिलाओं को गैस संयोजन कराने के वादे करती है। वहीं, उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों से प्राप्त आंकड़े ‘भोजन माताओं’ के धुएं के गुबार में उलझती ज़िंदगी की एक भयावह तस्वीर भी पेश करती है।
उत्तराखंड राज्य के हजारों स्कूलों में आज भी लकड़ी पर ही खाना पकाया जा रहा है। राज्य के हजारों स्कूल आज भी विकास की मुख्य धारा से पूरी तरह से नहीं हैं जुड़ पाए।
कल्पना कीजिए की जब एक छोटे से परिवार में घुएं भरे लकड़ी के चूल्हे पर खाना पकाना मुश्किल होता है, तो भला इतने सारे बच्चों के लिए कैसे भोजन माता खाना पकाती होगी?
प्रदेश के इन सरकारी स्कूलों में सरकार की कई महत्त्वाकांक्षी परियोजनाएं शासन और प्रशासन के बीच फंस कर दम तोड़ रही हैं। प्रदेश के इन हज़ारों स्कूलों में ‘उज्जवला’ योजना के नाम पर सिर्फ़ 5000 रुपए मुहैया कराए जाते हैं, जिसमें स्कूल में खाना पकाने के लिए बर्तन आ जाएं, वही बड़ी बात है। वहीं, दूसरी तरफ अगर यह कहा जाए कि सरकार की दूसरी बड़ी परियोजना मिड डे मील का भार भोजन माताओं के ही कंधे पर है, तो बिल्कुल भी ग़लत नहीं होगा।
मिड डे मील को सफल बनाने के प्रयास में इन भोजन माताओं ने अपनी ज़िंदगी धुएं में झोंक रखी है। प्रदेश के हजारों स्कूल ऐसे हैं, जहां पर मीड डे मील पकाने के लिए आज तक भी गैस संयोजन नहीं है। भोजन माता या फिर स्कूल प्रबंधन जंगल से लकड़ी इक्ठठा करते हैं, तब जाकर केन्द्र सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना चल पाती है।
विभागीय आंकडों के अनुसार प्रदेश में मौजूदा समय में करीब 17689 स्कूल हैं. जहां मिड डे मील पकाया जाता है। 5603 स्कूल ऐसे हैं, जहां पर गैस कनेक्शन पहले ही मुहैया करवाया जा चुका है। करीब 5519 स्कूलों को अब सरकार एक संस्था की मदद से गैस कनेक्शन मुहैया करवाने जा रही है। बावूजद इसके करीब 6574 स्कूल अब भी ऐसे बच जाते हैं, जहां पर अभी भी लकड़ी के भरोसे ही मिड डे मील पक रहा है।
भोजन माताओं की ज़िंदगी से खिलवाड़ पर केंद्र सरकार का रवैया जहां अभी तक उदासीन दिखा है, वहीं इस बड़ी लापरवाही के लिए राज्य सरकार ने बजट अभाव का हवाला दे कर सारा ठीकरा केन्द्र के सिर फोड़ अपने हाथ खड़े कर दिए हैं।