अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन को ‘कॉपी कैट’ के नाम से जानते हैं। यह अवधारणा आम है कि चीन अकल से अधिक नकल पर विश्वास करता है। पिछले कई दशक में इसके कई उदाहरण भी देखने को मिलते रहे हैं, जब चीन अमेरिका या अन्य देशों के नकली सामान बनाता रहा है।

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अमेरिका के टाइम मैग्जीन की चीनी नकल।
यहां तक चीन ने दुनिया के कई स्मारकों, ऐतिहासिक जगहों की भी नकल बना रखी है।

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चीन में लंदन के टावर ब्रिज की नकल।
लेकिन हालात बदल रहे हैं। वर्ल्ड इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स के मुताबिक 2015 में चीन ने पेटेंट्स के लिए दुनिया में सबसे अधिक अर्जियां भेजी हैं। चीन की तरफ से करीब 11 लाख अर्जियां भेजी गईं हैं, जबकि अमेरिका की तरफ से भेजे जाने वाली अर्जियों की संख्या है 5 लाख 89 हजार।
वहीं, जापान ने पेटेंट्स के लिए 3 लाख 19 हजार अर्जियां भेजी हैं। इसके बाद नंबर आता है दक्षिण कोरिया का, जहां से 2 लाख 14 हजार पेटेंट्स आवेदन किए गए हैं। इसके बाद क्रमशः यूरोपीय संघ, जर्मनी और भारत हैं।
भारत 46 हजार पेटेंट्स आवेदन के साथ 7वें नंबर है।
अब सवाल उठता है कि पेटेंट्स के आवेदनों का विकास या अर्थव्यवस्था से क्या लेना-देना है। दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट्स के आवेदन इस बात का मानक हो सकता है कि रिसर्च एंड डेवलपमेन्ट के मामले में किस देश में कितना काम हो रहा है। फैक्ट्री में उत्पाद बनाना और इसे बाजार में बेचना भर ही सफल अर्थव्यवस्था का पैमाना नहीं हो सकता।
उदाहरण के तौर पर एप्पल के सभी आईफोन भले ही चीन की फैक्ट्रियों में बनते हैं, लेकिन इसका इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स एप्पल के पास है जो एक अमेरिकन कंपनी है।
इस मामले में अब तक अमेरिका अव्वल रहा है। यहां की MIT सरीखे शिक्षण संस्थान रिसर्च एंड डेवलपमेन्ट के मुख्य केन्द्र रहे हैं।
इस तरह ये आंकड़े एक तरह से साबित करते हैं कि चीन में रिसर्च एंड डेवलपमेन्ट का काम इन दिनों तेजी से हो रहा है।