आज भले ही भारत को विदेशों से कर्ज लेना पड़ता है, लेकिन एक समय ऐसा था, जब यहां के राजा-महाराजा अंग्रेजों को विकासमूलक कार्यों के लिए कर्ज दिया करते थे।
जी हां, वर्ष 1870 में ब्रिटिश सरकार ने होलकर राजवंश के महाराजा तुकोजीराव होलकर द्वितीय से करोड़ों रुपए का कर्ज लेकर इन्दौर के आसपास रेल लाइन बिछाना शुरू किया था। यह रोचक कहानी आज भी रेलवे के इतिहास में दर्ज है।
महाराजा तुकोजीराव होलकर द्वितीय मध्य रेलवे से होने वाले लाभ को बेहतर समझते थे। उनके द्वारा मुहैया कराए गए एक करोड़ रुपए के शुरुआती कर्ज से अंग्रेजी सरकार ने इन्दौर के नजदीक तीन रेलवे सेक्शन को जोड़ने का काम किया था।
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यही नहीं, रेल लाइन बिछाने के लिए महाराजा ने जमीन पूरी तरह निःशुल्क मुहैया करवाई थी।
इस संबंध में 5 मई 1870 को शिमला में वायसरॉय और गर्वनर जनरल इन कौंसिल के समक्ष इस समझौते पर मुहर लगाई गई थी।
यहां रेलवे के तीन सेक्शन इंदौर-खंडवा, इंदौर-रतलाम-अजमेर और इंदौर-देवास-उज्जैन के ट्रैक्स की कुल लम्बाई 117 किलोमीटर थी। अंग्रेजों ने महज सात साल में ही इसका निर्माण पूरा कर लिया और इस पर भाप का इन्जन चलाना शुरू कर दिया गया।
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पहाड़ी इलाका होने की वजह से इस सेक्शन में रेल लाइन बिछाना टेढ़ी खीर था। यही नहीं, नर्मदा नदी पर काफी बड़े पुल का निर्माण भी किया गया। रेल इंजन को ट्रैक्स तक लाने के लिए हाथियों का उपयोग किया गया था।