प्राचीनकाल से चली आ रही धनुर्विद्या या तीरन्दाजी मेघालय की राजधानी शिलांग का एक प्रसिद्ध खेल है। यह खेल यहां सैकड़ों वर्षों से खेला जाता रहा है, जो यहाँ के सैकड़ों लोगों की जीविकोपार्जन का साधन भी है।

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इस खेल को खासी तीरन्दाजी खेल संस्थान के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है। इससे 12 क्लब जुड़े हैं, जो इस खेल का आयोजन कराते हैं। इस खेल की खास बात यह है कि खासी तीरन्दाज इकट्ठा होकर बांस की गोलाकार छप्पर को अगले तीन मिनट तक इस पर निशाना लगाते हैं। एक राउंड की समाप्ति के बाद तीरों कि संख्या की गिनती की जाती है। उदाहरण के तौर पर 1214 तीरों के निशान प्राप्त होने पर उसका विजय नम्बर 14 होता है।

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परंपरागत रुप से “तोह तिम”के नाम से जाना जाने वाला यह खेल सपनों व तीरन्दाजी को जोड़ता लॉटरी पर आधारित खेल है। जो जुआरी जितने अच्छे ढ़ंग से अपने सपनों को वर्णित कर सकता है, उसके जीतने के अवसर उतने ही अधिक होते हैं। सपनों की व्याख्या करने के बहुसिद्धान्त हैं, लेकिन इसमें खिलाड़ी को अपने सपनों को संख्या में बदलकर उसपर बाजी लगानी होती है। एक व्यक्ति कम से कम 1 रुपए की बाजी लगा सकता है और जीतने पर उसे 80 रुपए तक प्राप्त हो जाते हैं। इसी तरह उसे दूसरे राउंड के लिए वह 70 रुपए तक कमा सकता है।

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यहां जुआरियों को उनके दोस्तों के उनके ड्रीम नम्बर पूछे देखे जा सकते है। उन्हें इसी तरह व्याख्या भी करना होती है। इस दौरान खेलने के लिए उन्हें उतने ही मात्रा में तीर भी प्राप्त होते हैं।

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अब आप सोच रहे होंगे कि ये खिलाड़ी अपने सपनों को कूटबद्ध कैसे करते हैं।
यह कुछ ऐसा होता है। यदि खिलाड़ी के सपने में एक महिला हो, तो इसके अंक के अन्त में 5 अंक वाला नम्बर होगा। इसी तरह सपने में कोई एक खास व्यक्ति हो तो उसके अंक के अन्त में 6 वाला अंक मिलेगा। इसी तरह 4 अंक खून का प्रतीक माना जाता है तथा यदि किसी का सपने में दांत हो, तो उसे 3 में परिवर्तित किया जाता है। पानी को 8 में बदला जाता है। सभी जानवरों को 7 में परिवर्तित किया जाता है।
खासी परम्परा के अनुसार, मृत्यु को 69 के रुप में कूटबध्द किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति ने किसी दुर्घटना का सामना किया हो तो अंक 64 या 46 अंक मिलेगा। स्वप्न अस्पष्ट या बहुत साधारण भी हो सकते हैं।

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जो लोग तीर से खेलते हैं उनका अच्छा खासा समय भी व्यतीत हो जाता है। यदि वे भाग्यशाली हुए तो धन भी अर्जित कर लेते हैं। पहले इस खेल को अनैतिक खेलों के रूप में जाना जाता था, लेकिन बाद में सरकार ने इसे कानूनी मान्यता प्रदान कर दी। अब जुए के इस खेल को व्यवसाय के रूप में खेला जाता है।
इस खेल के लिए पूरे मेघालय में 1500 कानूनी काउन्टर हैं। जबकि पूर्वोत्तर तथा उत्तर बंगाल में भी कुछ काउन्टर हैं। इस खेल से राज्य सरकार को 1 से 2 करोड़ रुपए सालाना का राजस्व प्राप्त होता है। मेघालय सरकार इस खेल को वैश्विक स्तर पर लोक प्रिय बनाने के लिए लोगों को ऑनलाइन जोड़ रही है।

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इस खेल का दिलचस्प तथ्य यह है कि जुआरी जीतने के बाद बहुत ज्यादा शराब पीते है तथा जो हार जाते हैं इस आशा में और ज्यादा पीते हैं कि दूसरी बार उन्हें जीत जरूर मिलेगी।
हालांकि, तीरन्दाजी के इस खेल में कुछ नियमित जुआरिय़ों को ही जीत नसीब हो पाती है।